कोरोनाकाल में समस्याओं के समाधान के लिये अपनायें आई पी डी ई फार्मूला
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अमेरिका के ड्राइविंग स्कूलों में ड्राइविंग सिखाते समय एक फॉर्मूला सिखाया जाता है जो ड्राइविंग के साथ साथ इस कोरोनाकाल में हमारे जीवन की समस्याओं से निबटने मे काफी कारगर सिद्ध हो सकता है। कई बेस्टसेलर किताबों के लेखक रॉबर्ट डी शुलर ने आई पी डी ई मेथड की चर्चा अपनी एक पुस्तक में बखूबी की है।
अमेरिकन स्कूलों प्रशिक्षण देते समय यह बताया जाता है कि जब आप किसी व्यस्त सड़क पर ड्राइविंग कर रहे होते हैं तो सबके पहले इडेंटिफाय यानी पहचान करना होता है कि कौन सा वाहन कैसे और कितनी गति से चल रहा है ? क्या किसी और वाहन के गलत दिशा से आने की संभावना बन रही है ?
दूसरा नियम है- प्रिडिक्ट यानी भविष्यवाणी करना अर्थात अनुमान लगाओ कि सामने वाला क्या करने जा रहा है और कब ?
इसके बाद तीसरा नियम है – डिसाइड यानी निर्णय। अब आपको सम्यक अनुमान के बाद आपको निश्चय करना है कि आप सामने वाले के व्यवहार पर क्या प्रतिक्रिया दिखाएंगे ?
चौथा नियम है -एग्जीक्यूट यानी जब आप निर्णय कर लें तो अपनी प्रतिक्रिया को फुर्ती तथा दृढ़तापूर्वक संपादित करें।
ड्राइविंग स्कूल में सिखाये गये नियम न सिर्फ आपको ड्राइविंग में एक्सपर्ट बनाते है बल्कि आपके निजी जीवन मे आनेवाली चुनौतियों से जूझने की अद्भुत क्षमता प्रदान कर सकते है खासकर
तब जब आपके सामने कोरोनाजनित समस्याओं का पहाड़ सामने खड़ा हो। आ इस समय एक तरफ जहां आपको स्वयं तथा अपने परिवार को संक्रमण से बचाना है, वही जीवनयापन के लिए अपने कारोबार को भी चलाते रहना है। आज जहां कोरोना के प्रभाव में पहले से ही कमजोर हमारी अर्थव्यवस्था की जड़ों को हिला कर रख दिया है,लोगों के विस्थापन की त्रासदी के साथ ही रोजी-रोजगार से जुड़ी संभावनाओं में काफी कमी आयी है और यह समस्या एकतरफा नहीं है बल्कि सार्वजनिक व विश्वव्यापी है।
इस आड़े वक्त में आप समस्याओं से निजात पाने के लिए उपरोक्त फार्मूले का उपयोग आप बखूबी कर सकते है। तो आईये देखते है कि कैसे हम इस फार्मूले का प्रयोग अपने निजी जीवन मे कर सकते है ?
आप एकाग्रचित्त होकर किसी शांत जगह पर कागज और पेन लेकर बैठ जाए। इसके बाद आपको अपनी समस्याओं के मकड़जाल से निकलकर , सबसे पहले- अपनी समस्या को आडेन्टिफाई यानी पहचानना होगा। कई बार ऐसा होता है कि जिसे हम समस्या मानकर चल रहे है, असल मे वह तो समस्या है ही नही। वह तो हमारी नकारात्मक सोच का परिणाम है। वास्तव में समाधान तक पहुंचने के लिए हमें समस्या के मूल-स्वरूप की पहचान होनी आवश्यक है तभी हम अपनी समस्या का सही निदान ढूंढ सकेंगे।
दूसरे फेज …प्रिडिक्ट में आपको यह सोचना या अनुमान लगाना होगा कि यदि मैं इस समस्या के संबंध में कोई प्रतिक्रिया न करूं तो यह समस्या मुझे कहाँ तक प्रभावित करेगी ?
तीसरा फेज.…. डिसाइड करने यानी निर्णय लेने का है। जब आप किसी समस्या के समाधान के लिए उद्धत हैं तो आपके सामने जितने भी विकल्प हैं उन पर शांत मन से , सम्यक विचार करें । यह विचार मौखिक नहीं हो बल्कि पेन-कागज के द्वारा किया जाना चाहिये।आप एक एक कर बड़ी सावधानी व एकाग्रता से सभी संभव विकल्पों पर मंथन करें। इसमें कोई जल्दबाजी न दिखायें ,जितना समय लगता हो लगने दें क्योंकि आप इस समय सड़क पर ट्रैफिक में नहीं खड़े हैं। याद रखें कि आप से ज्यादा आपकी समस्याओं के बारे में कोई नही जानता । हां, यदि बुद्धि फिर भी भ्रमित हो रही हो तो आप किसी एक्सपर्ट या करीबी से किसी विशेष बिंदु पर सलाह ले सकते हैं। परंतु सबसे उपयुक्त और सकारात्मक निर्णय आपका ही हो सकता है क्योंकि आप से ज्यादा आपकी परिस्थितियों और कार्य करने की क्षमता के बारे में कोई अन्य व्यक्ति नहीं जान सकता ।
चौथा फेज.. जब आप पूरी तरह आश्वस्त हो जायें तो अपने सबसे अपने सबसे सकारात्मक और भरोसेमंद निर्णय को एग्जीक्यूट यानी कार्यरूप में परिणित करे। यहां यह जरूर ध्यान रखे कि अपने निर्णय को लागू करते समय मन में कोई भी नकारात्मक विचार न रखें और इसमें अपनी पूरी क्षमता व आत्मबल के साथ लग जाएं।
याद रखे , इस कोरोनाकाल मे पैदा हुई विषम परिस्थितियों में फ़िजा में मौजूद वायरस से ज्यादा सावधान हमें वातावरण में तैर रही नकारात्मकता से रहना है। हमें किसी भी परिस्थिति में अपनी सकरात्मकता को नही खोना है क्योंकि नकारात्मक विचार न सिर्फ हमारी समस्याओं के समाधान को प्रभावित करेंगें बल्कि हमारी प्रतिरोधक क्षमता को भी घटा देंगे जिसकी आज हमें शायद सबसे ज्यादा जरुरत है।
याद रखे ,आज हमें अपनी संमस्या के बोझ से अपने मानसिक संतुलन को नहीं खोना है बल्कि उनके स्वभाव की सही पहचान कर उपरोक्त्त वर्णित फार्मूले का सही उपयोग करते हुए समाधान की ओर उन्मुख होना है। तभी आप स्वयं तथा अपने करीबियों को एक नया जीवन दे सकते हैं जिसकी जरूरत आज पहले से कहीं ज्यादा है।